Mutual Fund से बनाते रहना है मुनाफा, जरूरी है निगरानी; एक्सपर्ट से जानिए कब-कब करें पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग
Mutual Fund Portfolio Rebalancing: एक्सपर्ट मानते हैं कि म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग का मकसद निवेश में अलग-अलग एसेट क्लास जैसे शेयर, गोल्ड, बॉन्ड वगैर में एसेट एलोकेशेशन को एडजस्ट करना है.
(Representational)
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Mutual Fund Portfolio Rebalancing: म्यूचुअल फंड में निवेश चाहें एकमुश्त करें या रेगुलर SIP, मकसद होता है दमदार रिटर्न कमाना. यानी, लंबी अवधि में अच्छा-खासा वेल्थ क्रिएशन करना, जो फाइनेंशियल लक्ष्यों को पूरा कर सके. इसलिए जरूरी है कि म्यूचुअल फंड निवेशक समय-समय पर पोर्टफोलियो की निगरानी करते रहे और जब भी जरूरी लगे उसकी रीबैलेंसिंग करें. एक्सपर्ट मानते हैं कि म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग का मकसद निवेश में अलग-अलग एसेट क्लास जैसे शेयर, गोल्ड, बॉन्ड वगैरह में एसेट एलोकेशन को एडजस्ट करना है. उनका कहना है कि लंबी अवधि में निवेश लक्ष्य हासिल करने के लिए म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो को नए सिरे से एडजस्ट करना चाहिए.
क्या है म्यूचुअल फंड रीबैलेंसिंग
IDBI AMC के हेड (प्रोडक्ट एंड मार्केटिंग) अजीत गोस्वामी का कहना है, जब कोई निवेशक म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो का चयन करता है, तो आमतौर पर अपने निवेश लक्ष्यों, जोखिम उठाने की क्षमता और मार्केट कंडीशन के आधार पर हरेक फंड में अपने निवेश का एक निश्चित आवंटन करता है. हालांकि, जैसे-जैसे बाजार में उतार-चढ़ाव आता है, पोर्टफोलियो में हर फंड की वैल्यू बदल सकती है, जिसके चलते शुरू में किए गए आवंटन में अंतर आ सकता है.
एक्सपर्ट का कहना है, पोर्टफोलियो को रीबैलेंसिंग करने में शुरुआती आवंटन (मूल आवंटन) को दोबारा से मेन्टेन करने के लिए जिन फंड्स में ग्रोथ है, उनमें कुछ हिस्सा बेचकर जिन फंड्स की वैल्यू कम हुई है उनमें निवेश करना शामिल है. उनका कहना है कि रीबैलेंसिंग का मकसद रिस्क लेवल और पोर्टफोलियो की रिटर्न क्षमता को बनाए रखना है. साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि पोर्टफोलियो निवेशक के लॉन्ग टर्म निवेश लक्ष्यों के मुताबिक बना रहे.
कब रीबैलेंस करें म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो
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BNP फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम का कहना है, म्यूचुअल फंड निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो पर नजर रखनी चाहिए. समय-समय पर रीबैलेंसिंग करनी चाहिए. रीबैलेंस कब करनी चाहिए, यह समझना काफी अहम है. उनका कहना है कि फाइनेंशियल कंडीशन में बदलाव आने पर निवेशकों को पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग करनी चाहिए. वहीं, एसेट एलोकेशन डिजायर्ड प्रोफाइल के मुताबिक नहीं होने, निवेश के लक्ष्यों में बदलाव, टैक्टिकल बदलाव और स्कीम्स में ज्यादा ओवरलैपिंग होने पर निवेशक को अपने पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग करनी चाहिए.
अजीत गोस्वामी का कहना है, मार्केट कंडीशन में बहुत ज्यादा बदलाव हो, तो म्यूचुअल फंड निवेशक को पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग करनी चाहिए. क्योंकि मार्केट में उठापटक का आपके एसेट एलोकेशन या इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी पर असर होता है. वहीं, अगर आपने अपने निवेश के लक्ष्य में बदलाव किया या कोई नया मकसद शामिल किया है, तो उस स्थिति में भी निवेशकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए.
उनका कहना है, लंबी अवधि में निवेश की स्ट्रैटजी को बनाए रखने के लिए जरूरी हो जाता है कि तिमाही, छमाही या सालाना आधार पर पोर्टफोलियो की रीबैलेंसिंग करें. किस अवधि को आप चुनते हैं, यह आपके निवेश लक्ष्य और रिस्क उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है. उनका कहना है, रीबैलेंसिंग करते समय टैक्स देनदारी को जरूर ध्यान में रखना चाहिए.क्योंकि पोर्टफोलियो किसी फंड की खरीद-या बिक्री टैक्स लायबिलिटी के दायरे में आ सकती है.
(डिस्क्लेमर: म्यूचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है. निवेश से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)
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04:34 PM IST